पंचायत चुनाव में लोकतंत्र की हत्या, सत्ता और प्रशासन ने मिलकर रची गहरी साज़िश — करन माहरा……………
उत्तराखंड के इतिहास में शायद पहली बार ऐसा हुआ है जब लोकतंत्र को इस बेरहमी से कुचला गया है।
आज हुए पंचायत चुनाव कोई आम चुनाव नहीं थे बल्कि ये एक राजनीतिक षड्यंत्र थे, जो पहले से ही सत्ता के आदेश पर लिखी गई स्क्रिप्ट के अनुसार खेले गए।
इस पूरे चुनाव में सरकार, सत्ता पक्ष और प्रशासन ने मिलकर लोकतंत्र को लहूलुहान कर दिया है।
साज़िश को चरणबद्ध तरीके से अंजाम दिया गया।
पहला चरण पंचायती राज का अस्तित्व खत्म करने की चाल है।
पहले 6 महीने से अधिक समय तक गांवों में प्रशासक बिठाकर लोकतंत्र को ठप कर दिया गया। फिर पंचायत प्रतिनिधियों को दरकिनार कर, सत्ता ने अपने इशारों पर काम करने वाले अफसरों को बिठा दिया।
इस दौरान पूरी सरकारी मशीनरी को भाजपा के पक्ष में सजाया गया। फाइलें, योजनाएं, पैसा, पंचायत निधि..सब कुछ चुनाव को प्रभावित करने के लिए इस्तेमाल किया गया।
साजिश का दूसरा चरण मतदाता सूचियों से छेड़छाड़ और वोट मैनेजमेंट के लिए था
शहरों में भाजपा समर्थकों के वोट बनाए गए और निकाय चुनावों में भाजपा को जबरन जितवाया गया।
अब वही साज़िश गांवों में दोहराई गई।
भाजपा के लिए अनुकूल मतदाता के नाम को फिर गांवो की मतदाता सूची में जोड़ा गया एवं विपक्षी समर्थकों के नाम काटे गए।
वोटिंग बूथ की संरचना बदली गई। भाजपा के एजेंट बन चुके अधिकारियों को मतदान क्षेत्रों में भेजा गया।
ये मतदाता नहीं थे बल्कि ये सत्ता की कठपुतलियाँ थीं, जिनसे लोकतंत्र का तमाशा करवाया गया।
वहीं पिथौरागढ़ में सबसे बड़ा खेल देखने को मिला।
पिथौरागढ़ के धारचूला से कांग्रेस विधायक हरीश धामी जी ने बताया कि पिथौरागढ़ में मतपेटियों की संदिग्ध आवाजाही हुई है।
मदकोट और रिगू पोलिंग बूथ की मतपेटियों को जिलाधिकारी के आदेश पर मुनस्यारी मंगाया गया है।
मैं पूछना चाहता हूँ कि
क्यों 2 पोलिंग बूथों की मतपेटियों को मुनस्यारी मंगाया गया है ?
क्या मतपेटियाँ सुरक्षित हैं?
क्या ये मतपेटियाँ छेड़ी नहीं जाएंगी?
क्या सरकार चुनाव परिणाम अपने हिसाब से गढ़ रही है?
हमारा शक ज़ायज़ है क्योंकि जिस सीट पर ये सब हो रहा है, वहां मुख्यमंत्री के बेहद करीबी लोग बीडीसी चुनाव लड़ रहे हैं।
वहीं दूसरी तरफ चुनाव ड्यूटी लिस्ट एक दिन पहले लीक हो गई थी।
चुनाव आयोग के नियम स्पष्ट हैं कि मतदान ड्यूटी की सूची समय से पहले सार्वजनिक नहीं होनी चाहिए।
ताकि न तो मतदान अधिकारी डराए जाएं और न ही खरीदे जा सकें।
लेकिन पिथौरागढ़ में ड्यूटी लिस्ट मतदान से एक दिन पहले ही लीक कर दी गई। भाजपा के लोग पहले से जानते थे कि किसकी ड्यूटी कहां है।
मैं फिर पूछता हूँ कि क्या यही लोकतंत्र है? या फिर ये एक सरकारी ‘आपरेशन चुनाव मैनेजमेंट’ था?
मैं कहना चाहता हूँ कि हम डरने वाले नहीं हैं..हम आवाज़ उठाएंगे!
मैं राज्य सरकार और प्रशासन को स्पष्ट चेतावनी देता हूँ कि आप चाहें जितना सत्ता का दुरुपयोग कर लें, जनता सब देख रही है।
आप अगर ये सोचते हैं कि विधायक, जनप्रतिनिधि या जनता आपकी इन साजिशों से डर जाएगी, तो यह आपकी सबसे बड़ी भूल है।
मैं मांग करता हूँ कि मदकोट और रिगू बूथ की मतपेटियों को तत्काल सील कर उच्च न्यायिक निगरानी में रखा जाए एवं पिथौरागढ़ में चुनाव प्रक्रिया की न्यायिक जांच हो।
इसके साथ ही ड्यूटी लिस्ट लीक करने वाले अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई हो। और प्रभावित क्षेत्रों में पुनर्मतदान कराया जाए।यदि सरकार जनता के वोट से नहीं, प्रशासन की साज़िशों से जीतना चाहती है तो ये लोकतंत्र नहीं, तानाशाही है।
और हम इस तानाशाही के खिलाफ हर मंच पर आवाज़ उठाएंगे विधानसभा से लेकर गांव की चौपाल तक ……..